दिल्ली, ग्रेटू : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार नई को कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी के वेतनमान में कटौती और उससे वसूली के किसी भी कदम के गंभीर दुष्परिणाम होंगे। कर्मचारी का वेतन कम करने तथा अतिरिक्त राशि वसूलने का राज्य सरकार का निर्णय पूर्वव्यापी प्रभाव या पिछली
तारीख से लागू नहीं किया जा सकता है। जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने सेवानिवृत्त कर्मी के वेतनमान में कटौती के बिहार सरकार के आदेश को रद कर दिया। राज्य सरकार ने कर्मी से अतिरिक्त राशि वसूलने का भी निर्देश दिया था।
पीठ ने फैसले में कहा, किसी सरकारी कर्मचारी के वेतनमान में कटौती और उससे वसूली का कोई भी कदम दंडात्मक कार्रवाई के समान होगा, क्योंकि इसके गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं। शीर्ष अदालत ने सेवानिवृत्त कर्मचारी की अपील पर अपना फैसला सुनाया। कर्मचारी ने पटना हाई कोर्ट के अगस्त 2012 के आदेश को चुनौती दी थी।
हाई कोर्ट ने माना था कि वेतन निर्धारण में संशोधन और उसके परिणामस्वरूप कटौती फरवरी 1999 के सरकारी प्रस्ताव के अनुसार की गई थी। इसके अनुसार वह उच्च वेतन के हकदार नहीं थे।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, राज्य सरकार द्वारा आठ अक्टूबर, 2009 को पारित आदेश, जिसमें अपीलकर्ता के वेतनमान में कटौती करने और उससे अतिरिक्त राशि वसूलने का निर्देश दिया गया था, पूरी तरह से मनमाना है। इसे रद किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश को भी रद कर दिया।
यह है मामला: एक व्यक्ति को 1966
में बिहार सरकार में आपूर्ति निरीक्षक पद पर नियुक्त किया गया था। 15 वर्षों तक सेवा देने के बाद उन्हें मार्केटिंग आफिसर के रूप में पहली समयबद्ध पदोन्नति मिली। अप्रैल 1981 से उन्हें जूनियर ग्रेड में रखा गया। 25 वर्ष की सेवा पूरी करने पर उन्हें 10 मार्च, 1991 से वरिष्ठ ग्रेड, विपणन अधिकारी-सह-सहायक जिला आपूर्ति अधिकारी (एडीएसओ) के पद
पर पदोन्नत किया गया। राज्य सरकार ने फरवरी 1999 में प्रस्ताव जारी कर विपणन अधिकारी और एडीएसओ के वेतनमान को जनवरी 1996 से संशोधित किया था।
वह व्यक्ति 31 जनवरी, 2001 को एडीएसओ के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें अप्रैल 2009 में राज्य सरकार से पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि उनके वेतन निर्धारण में त्रुटि हुई है। इसलिए उनसे 63,765 रुपये वसूले जाने हैं, क्योंकि यह भुगतान उसकी पात्रता से अधिक था।
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