अच्छा स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन

 


अच्छा स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन


जबसे दैनिक जीवनमें भौतिक सुख-सुविधाओंका विकास हुआ है तभी से फिटनेस कार्यक्रमकी जरूरत महसूस हो रही है। स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। बिना अच्छे स्वास्थ्यके धन दौलत, पद-प्रतिष्ठा एवं अन्य भौतिक सुख-सुविधाएं सब बेमानी लगते हैं। जनमानसका स्वास्थ्य उत्तम हो, इस सबके लिए इस कॉलमके माध्यम से कई बार योगके बारेमें जानकारी देकर योगको अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है। दौड़ती भागती जीवनशैलीके कारण मनुष्य के पास अपने लिए कोई भी कार्यक्रम नहीं है जो उनके स्वास्थ्यको सुधार कर व्यवस्थित रख सके। आज मानवने विज्ञानमें नये-नये शोध कर प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा क्षेत्रमें इतनी प्रगति कर ली है कि इसके कारण जीवन काफी आसान तो हो गया है, परन्तु शारीरिक श्रम जो पहले यूं ही दिनचर्चामें आसानीसे हो जाता था, अब उसके लिए अलगसे फिटनेस कार्यक्रम चाहिए होता है। समय बचाती दुनियाके लिए योग मुख्य विकल्प है जो कम श्रम कर अधिक फिटनेस दे सकता है। सैकड़ों वर्ष पूर्व महर्षि पतंजलिने योगको लिखित रूपमें संग्रहित किया और योग सूत्रकी रचना की। योग सूत्रकी रचनाके कारण पतंजलिको योगका जनक कहा जाता है। इस योगके महान ग्रंथमें योगके बारेमें कहा गया है कि मनकी वृत्तियोंमें नियंत्रण करना ही योग है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि, यह अष्टांग योगके आठ सूत्र हैं। आठों अंगों में प्रथम दो यम एवं नियमको नैतिक अनुशासन, आसन, प्राणायाम एवं प्रत्याहारको शारीरिक अनुशासन एवं धारणा, ध्यान, समाधिको मानसिक अनुशासन बताया। गया है। योग हमें यम एवं नियम द्वारा व्यक्तिके मन और मस्तिष्कको ठीक करनेकी सलाह देता है। आसन और प्राणायाम करनेसे पूर्व यदि व्यक्ति यम एवं नियमोंका पालन नहीं करता है तो उसे योगसे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल सकता है। यम और नियमकी विस्तारसे चर्चा जरूरी है संयम मन, वचन और कर्मसे होना चाहिए। इसका पालन न करनेसे व्यक्तका जीवन एवं समाज दोनों दुष्प्रभावित होते हैं। इससे मन मजबूत और पवित्र होता है तथा मानसिक शक्ति बढ़ती है। सत्य, अहिंसा, असतेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह, यह नियम व्यक्तिगत नैतिकताके हैं। मनुष्यको कर्तव्य परायण बनाने तथा जीवनको सुव्यवस्थित करने हेतु पांच नियमोंका विधान किया गया है। ये नियम हैं शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर प्राणिधान । यम यानी मन, वचन एवं कर्मसे सत्यका पालन एवं मिथ्याका त्याग। जिस रूपमें देखा, सुना एवं अनुभव किया हो, उसी रूपमें उसे बतलाना सत्य है। अहिंसा दूसरा सूत्र है। इसमें किसीको मारना ही केवल हिंसाका रूप नहीं है, बल्कि किसी भी प्राणीको कभी भी किसी प्रकारका दुख न पहुंचाना अहिंसा है। असतेय अर्थात चोरी न करना। छलसे, धोखे से झूठ बोलकर.. बेईमानी से किसी चीजको प्राप्त करना भी चोरी है। जिसपर अपना अधिकार नहीं उसे लेना भी इसी श्रेणी में आता है। ब्रह्मचर्य मन, वचन एवं कर्मसे यौन संयम अथवा मैथुनका सर्वथा त्याग करना ब्रह्मचर्य है। सभी इंद्रिय जनित सुखोंमें संयम बरतना । अपरिग्रह अपने स्वार्थके लिए धन, संपत्ति एवं भोगकी सामग्रीमें संयम न बरतना परिग्रह है। इसका अभाव अपरिग्रह है। आवश्यकतासे अधिक संचय करना अपरिग्रह है। दूसरोंकी वस्तुओंकी इच्छा न करना। मन, वचन एवं कर्मसे इस प्रवृत्तिको त्यागना हो अपरिग्रह है। नियमोंमें शौचके अंतर्गत पानी मिट्टी आदिके द्वारा शरीर, वस्त्र, भोजन, मकान आदिके मलको दूर करना बाह्य शुद्धिमाना जाता है। सद्भावना, मैत्री, करुणा आदिसे की जानेवाली शुद्धि आन्तरिक शुद्धि मानी जाती है। केवल अपने भौतिक शरीरका ध्यान रखना पर्याप्त नहीं बल्कि अपने मनके विचारोंको पहचान कर उन्हें दूर करनेका प्रयास करना जरूपी है। शरीर और मन दोनों की शुद्धि संतोष दूसरा नियम है। इसमें कर्तव्यका पालन करते हुए जो कुछ उपलब्ध हो, जो कुछ प्राप्त हो, उसीमें संतुष्ट रहना किसी प्रकारकी तृष्णा न करना। तीसरा नियम है तप, इस नियममें अपने वर्ग, आश्रम, परिस्थिति और योग्यताके अनुसार स्वधर्मका पालन करना। व्रत, उपवास आदिको भी इसीमें शामिल किया जाता है। यानी कि स्वयंसे अनुशासित दिनचर्या में रहना है। स्वाध्याय चौथा नियम है, जिससे कर्तव्यका बोध हो सके, मतलब शास्त्रका अध्ययन करना। महापुरुषोंके वचनोंका अनुपालन भी स्वाध्याय के अंतर्गत आता है। ईश्वर प्राणिधान पांचवां नियम है। ईश्वरके प्रति पूर्ण समर्पण एवं संपूर्ण श्रद्धा रखना फलकी इच्छा का परित्याग पूर्वक समस्त कर्मोंका ईश्वरको समर्पण करना ईश्वर प्राणिधान कहलाता है। हजारों साल पहले भारतीय शोधकर्ताओंने यौगिक क्रियाओंसे होनेवाले लाभों को समझ लिया था जो आजकी चिकित्सा एवं खेल विज्ञानमें योगका प्रयोग खूब हो रहा है। योगके नियमोंका पालन करनेके बाद यदि यौगिक क्रियाओंको किया जाता है तो मानवमें शारीरिक एवं मानसिक स्तरपर आश्चर्यजनक रूपसे अलौकिकताका सुधार होता है। आज आधुनिकताकी इस अंधी दौड़में इनसानको अपने स्वास्थ्यपर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। आज जब मनुष्यके पास हर सुख-सुविधा असानी से उपलब्ध है, परन्तु समयका अभाव सबके सामने है, ऐसेमें फिटनेसको बनाये रखनेकी दिक्कत सबके सामने है। इस सबके लिए योग सबसे बढ़िया तरीका है। स्वास्थ्यको ठीक रखने के लिए रोज योग करें।

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