लंदन, एजेंसी। केवल किताबें पढ़ने से पढ़ाई में अव्वल स्थान या ऊंचा पद नहीं मिल जाता बल्कि पढ़ाकू होने के साथ जिद और जुनून जैसी भावनाओं का होना बहुत जरूरी है। नए अध्ययन में यह दावा किया गया है। राह में बार- बार आने वाली बाधा से मंजिल तक पहुंचने के मकसद को छोड़ देने के बजाए और इसे पूरा करने का दृढ निश्चय करना जरूरी है।
मेधावी बनाने में भावनाओं की अहम भूमिका : सगे भाई-बहनों में भी पढ़ाई को लेकर एक समान गुण नहीं होते। पढ़ना न पढ़ना बच्चों और किशोरों के स्वभाव या भावना पर आधारित होता है। अध्ययन में इसके लिए परिवेश और जीन को भी महत्वपूर्ण बताया है। काफी पहले
से यह कहा जाता रहा है कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं या जन्मजात गुण होने पर ही बच्चे मेधावी बनते हैं और पढ़ाई में अव्वल होते है। जबकि दूसरे बच्चे पीछे रह जाते हैं। लेकिन नया
अध्ययन इस मिथक को सिरे से खारिज करता है। अध्ययन के अनुसार, बच्चों में प्रेरणा, सेल्फ रेग्युलेशन, जिद और दृढ निश्चय पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए जरूरी हैं।
परिवेश का भी असर दिखा
इंग्लैंड और वेल्स में सात-16 वर्ष की आयु वाले 10,000 बच्चों पर यह शोध किया गया। इनमें सगे भाई-बहन भी थे। इसके तहत बच्चों की मौजूद भावनाओं, आनुवांशिकी, उनके परिवेश और पठन पाठन में उपलब्धि का अध्ययन किया गया। जर्नल नेचर ह्यूमन बिहेवियर में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया कि बौद्धिक क्षमताओं के साथ भावनाएं जैसे जिद और जुनून का होना पढ़ाई में अव्वल दिलाने के लिए जरूरी है। लंदन में क्वीन मैरी कॉलेज की डॉक्टर मार्गरीटा के साथ इस अध्ययन को करने वाली लंदन यूनिवर्सिटी ऑफ कॉलेज की डॉक्टर एंड्रिया एल्लग्रिनी ने बताया, 'लंबे समय से चली आ रही मान्यता पठन पाठन में उपलब्धि दिलाने के लिए बुद्धिमान होना पहली शर्त है, को हमारे शोध ने चुनौती दी है। 'इसमें बच्चों की भावनाओं को अहमियत दी गई।
